जीएसटी के अंतर्गत कर वापसी: कर प्रशासन में समयोचित कर-वापसी तंत्र आवश्यीक है क्योंकि यह अवरुद्ध निधियों की कार्यशील पूंजी में पुनर्प्राप्ति, मौजूदा व्यवसाय का विस्तार एवं आधुनिकीकरण करके व्यापार करना सरल बनाता है। जीएसटी विधि में अंतर्विष्टु कर-वापसी से संबंधित प्रावधानों का उद्देश्यम जीएसटी प्रणाली के अंतरत कर-वापसी (रिफंड) क्रियाविधियों को सुवय्वस्तिथ करना एवं उनका मानकीकरण करना है। इस प्रकार, जीएसटी प्रणाली के अंतरंग कर-वापसी का दावा करने के लिए एक मानकीकृत प्रपत्र होगा। दावा करने एवं अनुमोदन करने की क्रियाविधियां पूरी तरह से ऑनलाइन एवं समयबद्ध होंगी जो इस समय मौजूद समय लगाने वाली एवं जटिल क्रियाविधियों से बिल्कुल अलग हटकर हैं।

जीएसटी के अंतर्गत कर वापसी

सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 54 में सन्निहित प्रासंगिक तिथि का प्रावधान, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 77 में अंतर्विष्ट प्रावधान और प्रतिदाय नियम के नियम 1(2) में यथा-सूचीबद्ध संगत दस्तावेजों को प्रस्तुतत करने की आवश्यकता से उन विभिन्न परिस्थिसतियों का संकेत मिलता है जो कर-वापसी (रिफंड) का दावा करने के लिए आवश्यक होती हैं। निम्नपलिखित कारणों से कर-वापसी का दावा बनता है:

  1. माल अथवा सेवाओं का निर्यात
  2. एसईजेड (SEZ) इकाइयों एवं विकासकर्ताओं को आपूर्तियां
  3. माने गए निर्यात
  4. यूएन अथवा राजदतावासों आदि द्वारा की गई खरीद पर करों का प्रतिदाय
  5. किसी अपीलीय प्राधिकरण, अपीलीय न्यानयाधिकरण अथवा किसी न्या- यालय के निर्णय, आज्ञप्तिक अथवा निदेश के कारण उत्पीन्न‍ होने वाली कर-वापसी
  6. प्रतिलोमित शुल्कन संरचना के कारण संचित इनपु ट कर-क्रेडिट का प्रतिदाय
  7. अनंतिम आकलन को अंतिम रूप दिए जाने पर
  8. पूर्व-जमा की वापसी
  9. भूलवश अधिक भुगतान करने पर
  10. अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों द्वारा भारत में खरीदी गई और भारत से अपने देश वापस जाते समय अपने साथ ले जाई गई वस्तु ओं पर भुगतान किए गए जीएसटी का उनको प्रति-अदायगी
  11. अग्रिम रूप से भुगतान किए गए उन करों की वापसी के लिए वाउचर जारी करने पर कर-वापसी जिन पर वस्तुिओं एवं सेवाओं की आपूर्ति नहीं की गई
  12. किसी आपूर्ति को राज्यान्त्रिक आपूर्ति के रूप में मान कर प्रदत्त सीजीएसटी एवं एसजीएसटी की वापसी जिसे बाद में अंतर्राज्यीय आपूर्ति एवं इसके विपरीत रूप में मान लिया गया हो।

इस प्रकार, व्याेवहारिक रूप से लगभग हर परिस्थितति शामिल हो जाती है। जीएसटी विधि में यह आवश्यक है कि रिफंड का प्रत्येक दावा संगत तारीख से 2 वर्षों की अवधि के अंदर दायर कर दिया जाए।

क्रेडिट नोट

इसके अतिरिक्तस, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 34 में आपूर्ति पश्चातत डिस्काउंट के लिए अथवा यदि वस्तुएं एक निर्धारित समय के अंदर वापस कर दी गई हैं तो उनके लिए क्रेडिट नोट जारी करने का प्रावधान है। जब यह क्रेडिट नोट जारी किए जाते हैं तो इनसे स्पष्टमतया आपूर्तिकर्ता की आउटपुट देयता में कमी करने की मांग होती है। इसलिए, आपूर्ति के दौरान शुरूआत में प्रदत्त कर वास्ताविक रूप से देय कर से उच्चतर होगा। ऐसे परिदृश्या में आपूर्तिकर्ता द्वारा भुगतान किए गए बेशी कर की प्रति-अदायगी करने की आवश्यकता होती है। तथापि, इसे तुरंत वापस करने के बजाय इसे प्राप्तिकर्ता द्वारा प्राप्त किए गए इनपुट कर क्रेडिट में समनुरूपी कटौती का सत्यापन करने के पश्चात समायोजित किया जाना अपेक्षित होता है। सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 43 में इस क्रेडिट नोट को जारी करने से उत्पन आउटपुट देयता में कमी करने क्रियाविधि का प्रावधान है। यह आउटपुट कर देयता में समायोजन द्वारा प्रति-अदायगी का एक अन्य रूप है। यह प्रति-अदायगी सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 54 में उल्लिरखित सामान्यप प्रति-अदायगी प्रावधानों के अंतरत सम्मिलित नहीं होती है।

शून्य दर पर की गई आपूर्तियां

निर्यात उन प्रमुख श्रेणियों में से एक श्रेणी है जिसके अंतरत कर-वापसी का दावा सजिृत होता है। सभी निर्यातों (वस्तुेओं अथवा सेवाओं के) और एसईजेड को की गई आपूर्तियों को आईजीएसटी अधिनियम में शून्य दर पर की गई आपूर्तियों के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है। आईजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 16 के अंतरत “शून्यह दर पर की गई आपूर्तियो’’ का आशय वस्तुशओं अथवा सेवाओं अथवा दोनों की निम्न लिखित आपूर्तियों से होता है, अर्थात:

  • (क) वस्तु्ओं अथवा सेवाओं अथवा दोनों का निर्यात: अथवा
  • (ख) वस्तु्ओं अथवा सेवाओं अथवा दोनों का विशेष आर्थिक क्षेत्र के विकासकर्ता अथवा किसी विशेष आर्थिक क्षेत्र की किसी यूनिट को की गई आपूर्ति।

आपूर्तियों की शून्य रेटिगं के कारण आपूर्तिकर्ता को इन आपूर्तियों के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं अथवा सेवाओं अथवा दोनों के संबंध में इनपुट कर क्रेडिट का दावा करने का अधिकार होगा चाहे वे गैर-करयोग्यं हों अथवा इन आपूर्तियों को कर से छूट प्राप्त हो। शून्य रेटेड आपूर्तियों के कारण प्रति-अदायगी का दावा करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास दो विकल्प होते है। वह या तो बांड/एलयू टी के अंतरत निर्यात कर सकता है और संचित इनपुट कर क्रेडिट की वापसी का दावा कर सकता है अथवा वह एकीकृत कर की अदायगी करके निर्यात कर सकता है और सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 54 के प्रावधानों के अनुरूप उसकी वापसी कर दावा कर सकता है। इस प्रकार, जीएसटी विधि में निर्यातक (जिसमें एसईजेड को आपूर्तियां करने वाला आपूर्तिकर्ता भी शामिल होगा) को एकीकृत कर (आईटीसी का प्रयोग करके कर भुगतान पर आपूर्तियां करके ) के रूप में अग्रिम रिफंड का दावा करने अथवा बांड/एलयूटी का निष्पादन करके कर अदायगी के बिना निर्यात करने और शून्य रेटिड आपूर्तियां करने में प्रयुक्त इनपुटों अथवा इनपुट सेवाओं पर प्रदत्त कर के आईटीसी से संबंधित प्रति-अदायगी का दावा करने की नम्यता की अनुमति है।

शून्य रेटिड आपूर्तियों के मामले में अनंतिम प्रतिदाय करना

जीएसटी विधि में प्रतिदाय के कुल दावे के 90 प्रतिशत की अनंतिम वापसी करने का प्रावधान है यदि वापसी के लिए किए गए दावे शून्यव रेटिड आपूर्तियों से सजिृत हुए हों। यह अनंतिम प्रति-अदायगी पावती देने के पश्चात 7 दिनों के अंदर की जाएगी। कर-वापसी आवेदन की पावती सामान्यपत: 14 दिनों की अवधि के अंदर जारी कर दी जाती है परंतु शून्य रेटिड आपूर्तियों पर प्रदत्त एकीकृत कर की वापसी के मामले में पावती तीन दिनों की अवधि के अंदर जारी की जाएगी। यह अनंतिम वापसी किसी ऐसे आपूर्तिकर्ता को प्रदान नहीं की जाएगी जिस पर वापसी अवधि के तत्काल पूर्व पांच वर्ष की अवधि के दौरान अभियोग चलाया गया हो।

गलत कर का भुगतान

जीएसटी के अंतरगत यह हो सकता है कर-दाता व्यक्ति आपूर्ति के स्था्न के प्रावधानों के गलत अनु प्रयोग के कारण केंद्रीय कर और राज्य कर तथा इसके विपरीत के क्रम में एकीकृत कर का भुगतान कर दे। ऐसे मामलों में कर का उपयुक्ता भुगतान करते समय ब्याज प्रभारित नहीं किया जाएगा और विगत में भुगतान किए गए गलत कर की वापसी का दावा अन्यायपूर्ण संवद्धिृ के प्रावधानों के अधीन किए बिना पूरा किया जाएगा।

किसी ऐसे व्यंक्ति द्वारा दावा जिसने करापात सहन किया हो

किसी कर-योग्य व्याक्ति द्वारा इन आपूर्तियों पर देय कर से अधिक कर संग्रहित किया जाता है तो उसे सरकारी खाते में जमा कराया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने करापात सहन किया हो सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 54 के प्रावधानों के अनुसार प्रतिदाय का दावा दायर करने के लिए विधि में स्पष्ट प्रावधान किया गया है।

नैमित्तिक/अनिवासी करयोग्य व्यक्तियों को कर-वापसी

नैमित्तिक/अनिवासी करयोग्य व्यक्ति को पंजीयन के समय कर का अग्रिम रूप से भुगतान करना होता है। ऐसे व्यक्तियों पर प्रतिदाय पंजीकरण अवधि की समाप्ति पर देय होता है क्योंकि अग्रिम रूप से किए गए कर भुगतान की राशि पंजीकरण अवधि की वैधता अवधि के दौरान उनके द्वारा की गई आपूर्तियों पर देय वास्तविक कर देयता की तुलना में अधिक हो सकता है। विधि में इस श्रेणी के करयोग्य व्यक्तियों को कर-वापसी करने की परिकल्पना की गई है। परंतु, वास्तविक कर से अधिक भुगतान की गई अग्रिम कर की राशि की प्रति-अदायगी तब तक नहीं की जाएगी जब तक उन व्यक्तियों ने अपने पंजीकरण की प्रभावी अवधि के दौरान देय सभी रिटर्नें फाइल न कर दी हों। इस अनुपालन के पश्चात ही वह कर-वापसी स्वीकृत की जाएगी।

यूएन निकायों एवं अन्य अधिसूचित एजेंसियों को कर-वापस

यूएन निकायों तथा राजदतावासों को की गई आपूर्तियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप जीएसटी की अदायगी से छूट दी जा सकती है। तथापि, इस छूट को कर-वापसी तंत्र के तरीके से ही प्रचालन में लाया जा रहा है। इसलिए इन निकायों को आपूर्ति करने वाला करयोग्य व्यक्ति देय कर प्रभारित करेगा और उसे सरकारी खाते में भेज देगा। तथापि, यूएन निकायों तथा सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 55 के अंतरत अधिसूचित अन्य निकायों द्वारा की गई खरीद पर उनके द्वारा भुगतान किए गए कर की वापसी का दावा किया जा सकता है। यह दावा इस आपूर्ति को प्राप्त करने की तिमाही के अंतिम दिन से छह माह की समाप्ति से पहले किया जाना होता है।

अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को कर-वापसी

आईजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 15 में एक समर्थकारी तंत्र की शुरूआत की गई है जिसके द्वारा भारत में वस्तुओं की खरीद करने वाला कोई अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक उसके द्वारा भुगतान किए गए एकीकृत कर की वापसी के लिए अपने देश वापस जाते समय दावा कर सकता है। “पर्यटक” शब्द को परिभाषित किया गया है और यह ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो सामान्यत: भारत का निवासी नहीं है और जो विधिक गैर-आप्रवासी प्रयोजन के लिए 6 माह से अनधिक समय तक भारत में रहने के लिए भारत में प्रवेश करता है।

अनुचित संवद्धिृ

अनुचित संवद्धिृ की बात करते समय सदैव यह प्रकल्पना की जाती है कि व्यवसायी कर का भार अंतिम उपभोक्ता को अंतरित कर देगा। यह इस कारण से है कि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है जिसका भार उपभोक्ता द्वारा वहन किया जाना है। इस कारण से प्रति-अदायगी के प्रत्येक दावे को (कुछ विशिष्ट अपवादों को छोड़कर) अनुचित संवद्धिृ का परीक्षण पास करने की आवश्यकता होती है और ऐसा प्रत्येक दावा, यदि अनुमोदित कर दिया जाता है तो, उसे पहले उपभोक्ता कल्याण निधि को अंतरित किया जाता है। जीएसटी विधि इस जांच को संचित आईटीसी की वापसी, निर्यातों के कारण प्रति-अदायगी, अनुचित कर (केंद्रीय कर एवं राज्य कर और इसके विपरीत क्रम मे एकीकृत कर) के भुगतान की वापसी, ऐसी आपूर्ति, जिसका प्रावधान नहीं किया गया है, के लिए अदा किए गए कर की वापसी, अथवा जिसके लिए वापसी वाउचर जारी कर दिया गया हो तो कर की वापसी अथवा यदि आवेदक दर्शाता है कि उसने कर का भार किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित नहीं किया है, आदि के लिए अप्रयोज्य बना देती है। अन्य सभी मामलों में अनुचित संवद्धिृ की जांच, आवेदक को भुगतान किए जाने वाले दावे को पूरा करने के लिए आवश्यक होती है। यदि कर-वापसी का दावा 2 लाख रुपए से कम है तो अनुचित संवद्धिृ के अनुरोध को पार करने के लिए आवेदक को इस आशय की एक घोषणा करनी पड़ती है कि कर का भार किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित नहीं किया गया है और यह घोषणा कर-वापसी के दावे पर कारवाई करने के लिए पर्याप्त है। 2 लाख रुपए से अधिक के कर-वापसी दावों के लिए किसी चार्टड लेखाकार/लागत लेखाकार से प्राप्त प्रमाणपत्र देना होता है।।

क्रियाविधियों का मानकीकरण

जीएसटी विधि में कर-वापसी दावा करने के लिए मानकीकृत प्रावधान किए गए हैं। प्रत्येक दावा एक मानकीकृत प्रारूप में ऑनलाइन दायर किया जाएगा जिसकी 14 दिनों में (यदि वह दावा हर तरह से पूरा हुआ तो) पावती प्रेषित की जाएगी। नकदी रजिस्टर के जमा बाकी में पड़ी राशि की वापसी के लिए दावा मासिक रिटर्नों में भी किया जा सकता है। संबंधित अधिकारी उस वापसी दावे में पाई गई त्रुटत्रुियों की सूचना 14 दिनों के भीतर देगा और ऐसे मामलों में वह दावा अधिसूचित त्रुटत्रुियों का उल्लेख करते हुए आवेदक के पास वापस भेज दिया जाएगा और आवेदक उन त्रुटत्रुियों में सुधार करके अपना प्रति-अदायगी दावा पनु : दायर कर सकता है। 14 दिनों की अनिवार्य अवधि के पश्चात त्रुटत्रुियों का कोई ज्ञापन नहीं भेजा जाएगा। दावे को, यदि व्यवस्थित पाया गया तो, उस दावे की प्राप्ति की तारीख से 60 दिनों की अवधि के अंदर स्वीकृत करना होता है। यदि इसमें अनिवार्य समय से अधिक समय लगता है तो उस पर कर-वापसी के साथ-साथ 60 दिनों की अवधि की समाप्ति से लेकर वापसी की अदायगी की तारीख की अवधि तक ब्याज का भुगतान करना होगा (जीएसटी परिषद द्वारा अपनी दिनांक 18 मई और 19 मई, 2017 को आयोजित बैठकों में सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 56 के प्रावधानों के अंतरत 6 प्रतिशत और 9 प्रतिशत ब्याज की संस्तुति की गई है)। तथापि, यदि कर-वापसी का दावा किसी अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष किए गए पूर्व जमा के कारण किया जाता है तो यह ब्याज ऐसे किए गए भुगतान की तारीख से संदेय हो जाता है।

अपेक्षित दस्तावेज

आवेदक को अपने कर-वापसी दावे के साथ विस्तृत दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होते हैं। मानकीकृत एवं सरलता से समझ आने वाले दस्तावेज विनिर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार, प्रत्येक दावे के लिए जो मु ख्य दस्तावेज निर्धारित किया गया है, वह है उस दावे से संबंधित संगत बीजकों (न कि स्वयं बीजक) का विवरण देना। यदि यह कर-वापसी सेवा निर्यात से संबंधित है तो बीजकों का विवरण देने के अलावा विदेशी मद्रा में भुगतान की रसीद के साक्ष्य के रूप में संगत बैंक वसूली प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। यदि यह दावा किसी ऐसे आपूर्तिकर्ता द्वारा किया जा रहा है जिसने एसईजेड यूनिट को आपूर्ति की है तो उस एसईजेड में उन वस्तुओं/सेवाओं की प्राप्ति के साक्ष्य के रूप में किसी संगत अधिकारी का पषृ्ठांकन भी प्रस्तुत करना अपेक्षित होता है। इसके अतिरिक्त, उस एसईजेड यूनिट से इस आशय का एक घोषणा पत्र देना भी आवश्यक होता है कि उन्होंने आपूर्तिकर्ता द्वारा भुगतान किए गए कर की आईटीसी प्राप्त नहीं की है। यदि यह दावा संचित आईटीसी की वापसी के लिए है तो कर-वापसी नियमों में यथा-निर्धारित बीजक के विवरण युक्त केवल एक विवरण देना ही अपेक्षित होता है। यदि कर-वापसी का यह दावा किसी अपीलीय प्राधिकारी या न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश के कारण किया जा रहा है तो उस आदेश की संदर्भ संख्या का उल्लेख भी किया जाना चाहिए जिसके कारण यह कर-वापसी सजिृत हुई है। अनुचित संवद्धिृ का अवरोध दर करने के लिए, यदि कर-वापसी का दावा 2 लाख रुपए से कम है तो आवेदक द्वारा इस आशय की एक स्व-घोषणा देना ही कर-वापसी के दावे पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त होता है कि कर का बोझ किसी अन्य व्यक्ति को अंतरित नहीं किया गया है। 2 लाख से अधिक के कर-वापसी दावों के लिए किसी सनदी लेखाकार/लागत लेखाकार से प्रमाणपत्र देना होता है। यह नोट किया जाए कि यदि यह दावा शून्य रेटिड आपूर्तियों के कारण सजिृत दावा है या संचित आईटीसी का दावा है या अनचित कर (केंद्रीय कर और राज्य कर एवं इसके विपरीत क्रम मे एकीकृत कर) के भुगतान का दावा है या वह दावा है जहां आपूर्ति नहीं की गई और रिफंड वाउचर जारी नहीं किए गए तो इन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

प्राकृतिक न्याय का अनुपालन

यदि किसी दावे को समुचित अधिकारी द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो आवेदक को ऑनलाइन एक नोटिस भेजा जाएगा जिसमें उन कारणों का उल्लेख किया जाएगा जिनकी वजह से कर-वापसी खारिज की गई। आवेदक को इस नोटिस की प्राप्ति के 15 दिनों के भीतर उसका ऑनलाइन उत्तर देना होता है। इस प्रकार आवेदक को नोटिस दिए बिना कोई भी दावा खारिज नहीं किया जा सकता है।

भुगतान ऑनलाइन जमा किया जाएगा।

कर-वापसी के दावे को, जहां देय हो, सीधे आवेदक के बैंक खाते में जमा किया जाएगा। आवेदक को अपना चेक लेने अथवा कर-वापसी के दावे से संबंधित किसी अन्य मु द्दे को लेकर प्राधिकारियों के पास जाने की जरूरत नहीं होगी।

कतिपय मामलों में आयकु्त को कर-वापसी रोके रखने का अधिकार होगा

जीएसटी विधि में यह प्रावधान है कि जहां कर-वापसी के मुद्दे का आदेश अपील अथवा अन्य कार्यवाही की विषय वस्तु हो अथवा जहां इस आधिनियम के अंतरत कोई अन्य कार्यवाही लंबित हो और आयुक्त का यह विचार हो कि उक्त कर-वापसी करने से उक्त अपील में या दुष्करण अथवा कपटयकु्त प्रतिबद्धता के कारण अन्य कार्यवाहियों में राजस्व पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा तो वह करयोग्य व्यक्ति को सुने जाने का एक मौका देने के पश्चात उस कर-अदायगी को ऐसे समय तक रोके रख सकता है जिसका निर्धारण आयुक्त द्वारा किया जाएगा। परंतु यदि आवेदक अपील अथवा अगली कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप कर-वापसी प्राप्त करने का पात्र हो जाता है तो उसे 9 प्रतिशत ब्याज के भुगतान का प्रावधान करके पर्याप्त रक्षोपाय प्रावधान किया गया है।

निष्कर्ष

संक्षेप में, इस विधि में एक सरलीकृत, समयबद्ध और प्रौद्योगिकी चालित कर-वापसी की ऐसी प्रक्रिया की परिकल्पना की गई है जिसमें करदाता और कर प्राधिकारियों के बीच न्यूनतम अंतरापषृ्ठ होता है।

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